अश्ववत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।। गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ।। गीता : 10.26 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
‘वृक्ष’, पंच तत्व निर्मित संचालित विभिन्न गुणों, पदार्थ और शक्ति तरंगों के अन्तः एवं बाह्य प्रवाहों से वातावरणीय क्रियाकलापों तथा इनके संतुलन को परिभाषित, संरक्षित और संवर्धित करती है. इनके गुण और शक्ति, इनके पदार्थीय गुण और इनसे होती ऑक्सीजन की बाह्य प्रवाह के आंकलन से होता है. समस्त वृक्षों में ऊंचाई फैलाव से और 24
घंटे ऑक्सीजन देने की तीव्रता से प्रति इकाई आयतन में, पीपल अधिकतम नियंत्रता से प्राण वायु देने वाली और हृदय रोग सहित अन्य रोगों की औषधियों में काम आने वाली ब्रह्म रूप है. निरंतर ‘नारायण-नारायण रटते हुए पूर्ण रूप से भीतर केन्द्रस्थ रहते हुए नारायण रूप जगत में नारायण के कार्य निर्लिप्तता और निरंतरता से करने वाले ‘नारद’, ब्रह्मरूप हैं. हृदय की अपनी तीक्ष्ण सूक्ष्माति
सूक्ष्म आवृत्ति की ध्वनि तरंगों से अपने सहित अन्यों को भी हृदयस्थ ब्रह्म को गायन से जागृत करने वाला चित्ररथ ब्रह्म रूप ही थे. ब्रह्म में, ध्यान में तथा एकाग्रता की वह पराकाष्ठा रूप में जिसको सागर पुत्रों द्वारा तोड़े जाने पर तपवल की प्रचंड अग्नि ज्वाला से भस्म कर देने वाले कपिल मुनि भी ब्रह्मरूप थे.
गंगा कहती है :
ब्रह्म रूप, वृक्षों मे पीपल सर्वाधिक ऑक्सीजन प्रदायिनी और विभिन्न औषधियों के मूल हमारे बेसिन के पहाड़ी एवं मैदानी क्षेत्रों के जंगलों में अत्यधिक हैं. अतः ऑक्सीजन से संतृप्त यह जंगल शांति सुख प्रदायिनी ध्यानास्थली है और उच्च स्थैतिक ऊर्जा से रूपांतरित होते तीव्र कल-कल ध्वनि करती, अपने में मिट्टी के रासायनिक अवयवों को मिश्रित न करते हुए ऑक्सीजन से संतृप्त होता जल ही हमारा मौलिक चरित्र है. यही कारण है, मेरे जल में ऑक्सीजन रखने की क्षमता 14 पी.पी.एम तक पहुँचने की और ‘एनटी वायरस शक्तियों बैकट्रियोफेज आदि से परिपूर्ण रहने की. अतः जिस तरह मानव की स्थिरता उसकी सांस की गहराई को परिभाषित करती है, उसी तरह जल की शुद्धता स्थायी रूप से ऑक्सीजन रखने की क्षमता को बताती है. देखो ! हिमालय के नजदीक क्षेत्र नेपाल और चीन तथा मेरे बेसिन के दूसरे देश के भाग जैसे बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में ही पीपल पाए जाते है. इसलिए हिमालय के जंगलों की रक्षा आवश्यक है. देवर्षियों में नारद सहित अन्य पूर्व के साधक और वर्तमान युग में हुए महान योगी यथा तैलंगस्वामी, रै-दास, कबीरदास, तुलसी दास, श्यामाचरण लाहिरि तथा पंडित राज जगन्नाथ आदि नारद और कपिल मुनी के समान ही ब्रह्म ज्ञानी थे.