यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् । यज्ञों दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ।। गीता : 18.5 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
यज्ञ, दान और तप रूप कर्म
त्याग करने के योग्य नहीं है बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है क्योंकि यज्ञ, दान और तप ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान् पुरुषों
को पवित्र करने वाले हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
यज्ञ करनें की अवधारणा
मात्र, शरीरस्थ केन्द्र का ब्रह्म
का निरूपण शक्ति-प्रदायिनी है. यज्ञ करने की क्रियाएँ रेखांकित कोशिका का घन्त्वीकरण
इनके कम्पनावस्था आवृत्ति को न्यून करना है. धन या शक्ति (विद्या) आदि का दान, केंद्र
की प्रवलता को दृढ़ करता तप केन्द्रस्थ होने को ही कहते हैं. अतः यज्ञ-तप-दान
केन्द्रस्थ होने को ही कहतें हैं. ये ही है कम्पन्न को दूर करनें वाले पवित्र करने वाले.
(17) गीता (5.10-11 और 18.5) प्रतिष्ठित करती है कि जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में
अर्पण करके आसक्ति को त्याग कर ममत्व बुद्धि रहित कर्म करता है वह जल से कमल के
पत्ते की भाँति पाप से लिप्त नहीं होता. यही है, ‘कवि की स्थिरता
में ठहराव में कोई रस नहीं है. वह तो गति का प्राणी है, परन्तु यह गति आभासी नहीं होनी चाहिए. संसार की
गति के किसी प्रकार के विसंवाद का सर्जन किए बिना लय-ताल मिलाने वाला होना चाहिए. कवि
स्वयं ही स्वयं से प्रश्न पूछ-पूछ कर खोदता है, कुरेदता है. जैसे
कोई व्यक्ति बीज को प्राप्त करने के लिए छिलके से लेकर सम्पूर्ण फल को छील डालता
है, ठीक इसी प्रकार से कवि
अपने अंदर-अंदर को सांगो पांग रूप में उधेड़ने से भी नहीं झिझकता है. उसे कथित
सफलता या निष्फलता के बजाय अपनें भाव को यथार्थ रीति से प्राप्त करने और समझने में
रस आता है. उसके पास अपनें स्वयं के मापदंड हैं. उसके अपनें सिद्धांत हैं. उसे
स्वप्नों के खँडहर नहीं चाहिए. आहें और आँसू नहीं चाहिए. यह मात्र एक अभीप्सा है निरपेक्ष
भाव से भरे जीवन की. यही है भारत के
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के हृदयस्थल की पवित्रता की पराकाष्ठा का उद्धरण
उनकी ही पुस्तक ‘साक्षीभाव’ में. अतः श्री मोदी जी
भारत के ‘पवित्रतम निर्लिप्त महान कर्म-योगी प्रधानमंत्री हैं.
गंगा कहती है :
बुद्धिमान पुरुष की की पवित्रता, मेरे विश्व की श्रेष्ठतम जलगुण शक्ति, संरक्षण के तकनीकी सिद्धांत को सम्बोधित करता है. देश संचालन की नियमावली पार्लियामेंट में बनती और देश की ‘धन-जन-मन-बुद्धि और आत्म-संस्कार’ की संचालिका मैं हूँ. तब मेरे पवित्रता के संरक्षण की तकनीकी नियमावली देश के नदी के मर्मज्ञ विद्वानों की संपुष्टि से पार्लियामेंट में क्यों नहीं पास करायी जाती. यही होगा बुद्धिमान पुरुषों द्वारा मुझे पवित्र रखनें की मौलिक सिद्धांत का निरूपण होना.