कर्शयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः । मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान् ।। गीता : 17.6 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
जो शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और उसके
अन्तःकरण में स्थित मुझ परमात्मा को कृश करने वाले हैं, उन अज्ञानियों को
तू आसुर स्वभाव वाले जान.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
‘आसुर स्वभाव’, क्लास रूम में शिक्षक की उपस्थिति को महत्व
नहीं देते हुए शरारत करने वाला छात्र उद्गिग्नता से अपनी शक्ति को निस्तारित करते
रहने वाला, पढ़ाई को अपने भीतर होने वाली शक्ति प्रवाह को
झटकारते हुए पूरे क्लास को अशांत कर के शिक्षक को तिरस्कृत
करने वाला छात्र आसुरी स्वभाव का है. यही है, एटम के आउटर मोस्ट सेल से इलेक्ट्रान
को उड़जाना और इसके आयन का रिएक्टिव भूखा हो
जाना है. अतः न्यूक्लियस, नियंत्रक आत्मा के ज्ञान ध्यान का नहीं होना, टर्बुलेन्ट एनर्जी के जेनरेशन और रेडिएशन का कारण है. आसुरी
स्वभाव, यह कंपकपाहट उत्पन्न करते हुए पदार्थों को विनष्ट करने वाला होता है. हर
एक एटम मानों जीव शरीर के केन्द्र में प्रोटोन आत्मा एक ही आकार प्रकार गुण का है.
उसी तरह केन्द्रस्थ न्यूट्रॉन परमात्मा के आकार प्रकार गुण प्रोटोन से अलग एक ही
प्रकार के हैं. अतः आत्मा परमात्मा को भूत समुदाय में नहीं देखते, शरीर के रूप-रंग
आदि के अन्तर से पोटैन्सियल डिफ्रेंस को तीव्र से तीव्रतर बनाकर एक दूसरे से घृणा द्वेष
भाव रखने वाले ‘आसुरी स्वभाव’ वाले हैं. यही भगवान श्री कृष्ण कहते हैं.
गंगा कहती है :
आसुर स्वभाव वाले मुझको शरीर रूप से नहीं मात्र साधारण जल समझने वाले, इस जल के प्रवाह को रोकने वाले, अपने आप को महान इन्जीनियर, राष्ट्रभक्त कहलाने वाले तथा बड़े-बड़े और ऊँचे-ऊँचे डैम और बैरेजों को बनाने व बनवाने वाले हैं. वे यह नहीं सोचते की रिजर्वायर के ‘डेड एसटोरेज के स्थिर जल में विभिन्न अवसादों के जमां होने के परिणामस्वरुप, डेन्सिटी करेंट से जल गुण बिनष्ट हो जाएगा. वे यह भी नहीं सोचते की विशाल जलाशय के कारण सेल्फ इनड्यूस्ड सिसमीसीटी, लैंड स्लाइड्स, सेडीमेंन्टेशन, इरोजन, मियैन्ड्रिंग व फ्लड आदि तीव्र होगा और इस विशाल स्ट्रक्चर का दुष्प्रभाव करोड़ों लोगों पर और वातावरण में विध्वंसकारी होता चला जायेगा. यही है आसुरी चरित्र से मेरे शरीर और गुण को विनष्ट करना.