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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है - एसटीपी को बालू क्षेत्र में स्थापित नही करना गंगा की प्रमुख समस्या है. अध्याय 16, श्लोक 14 (गीता : 14)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • January-18-2019
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि । ईश्वरोअ्महं भोगी सिद्धोअ्हं बलवान्सुखी ।। गीता : 16.14 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

वे आसुरी स्वभाव वाले सोचा करते हैं कि  वह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया और उन दूसरे शत्रुओं को भी मैं मार डालूँगा. मैं ईश्वर हूँ समस्त ऐश्वर्य को भोगने वाला हूँ. मैं सब सिद्धियों से युक्त हूँ और बलवान तथा सुखी हूँ.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

एक शत्रु को मारा है और दूसरों को भी मारूंगा, यह मानव के अन्तःस्थल के उच्च स्तरीय कम्पनावस्था से निस्तारित होती रहती शक्ति-तरंगो के प्रवाह से वातावरण को आन्दोलित होने का निर्देशन है. इस भीतरी तरंग की गांठ से थरथराती हुई अव्यवस्थित कोशिकाएं टूटती-फूटती, शक्तिक्षय करती हुई, मन की स्थिति में अत्यधिक उतार-चढ़ाव वाली अशांत ऊर्जा के रूप में विराजमान हो जाती है. ऐसी स्थिति में वह आसुरी स्वभाव का मानव अपने आप को ईश्वर सदृश्य समस्त ऐश्वर्य को भोगने वाला समस्त सिद्धियों से युक्त बलवान और सुखी मान लेता है.

गंगा कहती है :

तुमनें एक डैम के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा इस तरह डैम का स्ट्रक्चरल डिजाइन करने में एक्सपर्टाइज हासिल तो कर ली पर डैम बनना कहाँ चाहिये वहाँ पर नदी के नतोदर और उन्नतोदर किनारे के आकार-प्रकार और किनारे पर वेग और बहाव में मृदाभार में क्या सम्बंध हो, फ्लड प्लेन का स्वरूप कैसा हो?  इन सब को जाने बगैर तुम हाइड्रो पावर प्लान्ट को संस्थापित कर लेते हो. यही प्लान्ट की हाइड्रोलिक एफिसियेन्सी को नजर अंदाज करना होता है. टीहरी डैम भिलंगना और भागीरथी के संगम पर यह जानते हुए कि सेडीमेन्ट लोड यहाँ ज्यादा और अनियंत्रित है पर क्यों? क्या, यह भी एक कारण अत्यधिक न्यून पावर जेनरेशन का नहीं है?  क्या चीन का 175 M. का TGP 18 हजार मेगावाट और 260.5 मी.के टीहरी से 700 मेगावाट कौन इसका जबाब देगा?  इसी तरह तुम्हारे समस्त हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में हाइड्रोलिक एफिसियेन्सी की कमी के कारण अर्थात तुम्हारे यह नहीं जानने के कारण कि प्लान्ट में इनलेट प्वाइंट कहाँ हो, टरबाइन में बालू का जाना,  ब्लेड का घिसना-टूटना-बैठना आदि होना पावर जेनरेशन का न्यून होना है. इसी तरह तुम्हारी अज्ञानता STP के साथ है. तुम जानते हो कि यह संयंत्र कार्बनिक भार के एक सीमित भार की ही व्यवस्थित करने की क्षमता जैविक भार को और वायु प्रदूषण को बढ़ाते हुए करता है, फिर भी तुम कहते हो कि गंगा प्रदूषण का यह निदान है. इससे कहीं ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि तुम अभी कुम्भ में करोड़ों लोंगों के मल-जल को कुम्भ क्षेत्र को बालू कर रहा है इसे प्रत्यक्ष देख रहे हो, फिर भी STP को बालू क्षेत्र में विस्थापित करने पर सहमत नहीं हो. यही सब है तुम्हारा अपने आप को ईश्वर समझना ऐश्वर्य को भोगने वाला सब सिद्धियों से युक्त बलवान और सुखी समझना.

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