रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।। वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ।। गीता : 10.23 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ:
मैं एकादश रुद्रों में शिव हूँ, यक्षों तथा राक्षसों में सम्पत्ति का देवता (कुबेर) हूँ, वसुओं में अग्नि हूँ और समस्त पर्वतों में मेरु हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
रुद्राणां अथार्त समस्त रुद्रों में,
विध्वन्शकों में, नष्ट भ्रष्ट करने वालों में, परम शांत निरंतर ध्यानस्त रहने वाले संसार के समस्त बंध विनिर्मुक्ता आनंदानंद ‘शिव’ रूप रुद्र वह परब्रम है. महातांडवस्था से ध्यानस्त, परम-अशांति में परम शांति रखने वाले रुद्रों में शिव रुप रुद्र परब्रहम है. यक्ष राक्षस मूल प्रकृति के तहत विध्वन्शकारी उपद्रवी चंचलमन के होते हैं. इनमें विवेकी और आत्म संयम योग
अग्नि का होना देव कृपानुभूति ही संभवतः यही हैं, यक्ष और राक्षसों के मध्य, देवताओं के खजाने का उत्तराधिकारी खजान्ची, ‘कुबेर धन के मालिक का होना, परब्रहम का होना है. ‘वसुओं, नागो को मिटाने जलाने वाली काम, क्रोध, लोभ, मद-मोह कभी नहीं मिटने वाली आग को, मिटाने वाली ज्ञान कुण्ड के हवन रूप अग्नि वह परमात्मा है और ज्ञान शक्ति की ऊँचाई का आधार उसकी गम्भीरता का धैर्युक्त होना है. शिखर वाले पर्वतों में ऊँचाई से ज्यादा गहराई के पर्वत सुमेरु पर्वत, परब्रह्मरूप,चरित्र निर्वाण को संबोधित करता है. अतः अशांति में शांति अचारित्रिक गुणों में चारित्रिक गुणों का होना, अज्ञान की धधकती आग में ज्ञान रूपी शीतल अग्नि का होना और शक्ति धन की उँचाई के लिये धैर्य रूप ज्ञान का होना परब्रह्म का होना ही शांति की स्थापना का होना है.
गंगा कहती है :
बाढ़़ जैसी समस्यायों में मैं मिट्टी का जमाव शिव स्वरूप हूँ. यक्ष और राक्षस जैसा बालू के उन्नत्तोदर बाढ़ क्षेत्र से सटा जल प्रवाह अधिकतम वेग का सबसे अधिक शुद्ध जल का स्थायी क्षेत्र, धन के स्वामी कुबेर जैसा होता है. पवित्र करने वाले समस्त साधनों में जमी हुई हमारी मिट्टी बैक्ट्रियो फेज और अन्य अवशोषण शक्तियों से युक्त अग्नि स्वरूप पवित्र करने वाली और मेरी शक्ति जो तुम्हें दृश्यालौकित होती है उससे ज्यादा शक्तिशाली मैं भीतर से, भूजल पाताल गंगा से सुमेरू पर्वत जैसी आधार से प्रबल हूँ.