तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ । ज्ञात्वा शास्त्र विधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ।। गीता : 16.24 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
इससे तेरे लिए इस कर्तव्य
और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है. ऐसा जानकर तू शास्त्र विधि से
नियत कर्म ही करने योग्य है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
स्वयं ब्रह्म द्वारा या
ब्रह्मर्षियों-ऋषियों, ब्रह्म के संतानों द्वारा पिता को जानने वालों के द्वारा
समस्त शक्तियों के एक केन्द्र को देखते जानने वाले इस ब्रह्म को निरंतर अपने
अन्तस्थल में रखने वालों के द्वारा ब्रह्मांड के क्रियाकलापों का संकलित ज्ञान ही शास्त्र है. अतः योगियों-महात्माओं के तप से शक्ति की एकाग्रता से शरीर
में ब्रह्मांड के डिजाइनर के निरपेक्ष बिंदु संकल्पना से ब्रह्माण्ड को देखने व समझने
वालों का संकलित ज्ञान भंडार ही शास्त्र है. यही शास्त्र के हर शब्द शक्ति को, शक्ति
के खेल कार्य का. इस के समय और स्थान से परिवर्तन के परिणाम का, निर्णय का, अकाट्य
सत्य पथ है. यही है, ब्रह्माण्ड के आरंभ से अन्त तक का भूत, वर्तमान तथा भविष्य का
ज्ञान भंडार शास्त्र है. इसलिए
शास्त्रानुसार कर्तव्य ही स्थिरावस्था को शांति को आनंदानंद को प्राप्त कराने वाला
होता है. यही गीता की शास्त्रीय अवधारणा है.
गंगा कहती है :
शास्त्रों ने ही नदियों के
संगम के महत्व को प्रतिष्ठित
किया है. प्रयाग राज का विशेष महत्व गंगा,यमुना व सरस्वती का संगम स्थली
होने के कारण है. यह संगम विभिन्न प्रवाहों का एक जगह संकलित होना प्रतीत होता है
यह विध्वंसकारी होगा पर यह स्थिरता प्रदायिनी है. छोटी नदी, बड़ी नदी से वहाँ
संगम करती है, जहाँ बड़ी नदी उग्र कटाव की स्थिति में होती है. गंगा किनारे के
सैकड़ों गांव गंगा के इसी कटाव से उजड़ गए और उजड़ते जा रहे हैं. प्रयागराज व वाराणसी को कटाव से कोई बचा नही पाता और यहां शहर खिसकते रहते
हैं, यदि यहां नदियों के संगम नहीं होते. अतः
नदियों का संगम स्थान वह होता है, जहाँ छोटी नदी बड़ी
नदी के कटाव को और उसके घाव को भरती है. यही है, बड़ी बहन के घाव पर छोटी बहन के
द्वारा मरहम पट्टी करना. संगम, शास्त्रों द्वारा प्रतिष्ठित उस स्थान के स्थिरावस्था
का द्योतक हैं. इसी पर “कन्फ्लुऐन्स-थ्योरी
ऑफ़ मियैन्ड्रिंग मैनेजमेंट” का सिद्धांत हैं. यह सिद्धांत नदी कटाव के बचाव को
सरलतम स्थायी और न्यूनतम खर्च में प्रस्तुत करता है. यह तकनीकी सिद्धांत शास्त्र की
देन का एक उदाहरण है. अतः शास्त्रों के आधार पर संकलित तकनीकी ज्ञान से मुझे
संरक्षित करो.
नदियों की शास्त्रीय
अवधारणा :
प्रयागराज सहित विभिन्न जगहों की कुम्भ स्थली शास्त्रों द्वारा प्रतिष्ठित नदी शक्ति और उनके महत्व और संरक्षण की महत्ता को प्रतिष्ठित करते हैं. अत: नदियों की शास्त्रीय अवधारणा की सामाजिक व्यवहारिकता यह है कि ये पूजनीय माताएं हैं, इनके प्रवाह की निरंतरता और पवित्रता जीवन्तता प्रदायिनी हैं. इन्द्रियों की बढती तड़प से भोग की ललक से इस शास्त्रीय अभ्यास का मिटते जाना ही इनके उपयोग विधि की तकनीकी स्थिरता की, वातावरणीय संतुलंता की, कर्तव्य और अकर्तव्य-परायणता के ज्ञान की क्षय के कारण है. अतः इनके मौलिक स्वरूप में विशेषता से रूपांतरण लाना, बड़े-बड़े बांधों व बैरेजों से इनके प्रवाह को रोकना, साबरमती, गोमती जैसे डाइफ्रामवालो को बनाना, बरूणा जैसे चैनलाइजेशन का करना, असि नदी को नाली बनने जैसा, देश के हजारों नदियों के सूखते, सिमटते तथा दूषित होते जाने जैसा कार्य शास्त्र के विरूद्ध हैं. इसी तरह गंगा तल को खोदते मालवाहक जहाज के लिए रास्ता बनाते रहना, गंगा एक्सप्रेस वे को गंगा के फ्लड-प्लेन से जाना आदि के निर्माण तकनीक की विषय वस्तु. तत् सम्बंधित वेत्ताओं के वाद प्रतिवाद से राष्ट्रीय या प्रान्तीय स्तर पर प्रस्फुटित निर्णय का आधार ही शास्त्र विधि है और इनके प्रति कर्तव्य कर्म का बोध कराता है. ये इनके तात्विक ज्ञान से तथा इनके प्रति श्रद्धा भाव से प्राप्त होते हैं.