इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् । इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ।। गीता : 16.13 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
आसुरी व्यक्ति सोचता है, आज
मेरे पास इतना धन है और अपनी योजनाओं से मैं और अधिक धन कमाऊँगा. इस समय मेरे पास
इतना है, किन्तु भविष्य में यह बढ़कर और अधिक हो जायेगा.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
धन है तो वह और बढ़ेगा, धन के इस अहम को और इसे अत्यधिक प्राप्त करने
की आन्तरिक उद्दिग्नता व्याकुलता को परिलक्षित करती है. यह भीतरी-टेढ़ी कोशिका से
असंतुलित शक्ति प्रवाह के होने को निर्देशित करता है. यही है, अपनी भीतरी आन्दोलित
तरंग को बाहर फैलाना. बाहरी पदार्थ को आंदोलित करना. यही है, अपने भीतर के आग की चिंगारी
से बाहर आग की लपेटो को फैलाने वाले को ही भगवान दुष्ट प्रकृति वाले कहते हैं. यही
है, एक की यह प्रवृति अपने और दूसरों के लिए अशांति का कारण है. इस रोग का निदान है “स्थिरता, लगनशीलता,
धैर्य व संतोष से सबकी भलाई का ध्यान रखते हुए कार्य करना.
गंगा कहती है :
तीव्रता से एक झोंके में शक्ति
को पदार्थ में रूपान्तरण करने का प्रयास वातावरणीय असंतुलंता का विशेष कारण हो
जाता है, इसलिए “इतना कर लिया, इतना और करना है” यह अपरिभाषित है. देश की एक भी नदी कागज पर ही सही
परन्तु आकार प्रकार से रेखांकित
नहीं है. नदियों के भीतर, नदियों की जमीन,
दूसरों के पास कैसे है इसका कोई जबाब किसी के
पास नहीं है. यही है, हमने नदी पर इतना कब्जा कर लिया इतना करना और
बाकी है. हमने अपने कारखाने के इतने मल-जल को निस्तारित कर दिया, इतने की व्यवस्था
और करनी है, नदी के तल से इतना पत्थर निकाल लिया, इतना और निकालना
बाकी है, बोकारो स्टील प्लान्ट के
लिए इतना जल निकाल रहे है प्लान्ट अगर बढ़ेगा तो इतना ही जल और निकालेंगे, कानपुर
के टेनरी से इतना मल-जल गंगा में जा रहा है और इतना अभी और जायेगा. इस तरह
सम्पूर्ण देश की समस्त नदियां लावारिस की तरह अत्यन्त दयनीयता से गुजर रही है. अतः
पहले जब तक देश की नदियां परिभाषित नहीं होंगी, देश का
आगे बढ़ना बेहद कठिन है.