मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् । कीर्ति: श्रीर्बाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा ।। गीता : 10.34 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मैं सर्वभक्षी मृत्यु हूँ और मैं ही आगे होने वालों को उत्पन्न करने वाला हूँ. स्त्रियों में मैं कीर्ति, श्री वाक् स्मृति, मेधा, धृति तथा क्षमा हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
‘मृत्यु’, कोशिका व्यवस्था के नष्ट होने से शरीर में अवस्थित न्यूक्लियस का विखंडित होना है. इसमें आत्मा-परमात्मा रूप प्रोट्रोन और न्यूट्रोन का अलग-अलग होना होता है. इससे शक्ति प्रवाह का बंद होना और शरीर के पंचतत्व आपसी सम्बन्ध का टूटना होता है. यही है मृत्युरूपी ब्रह्म का कर्म और मृत्यु के बाद पूर्व शरीर में किए गए आत्मा द्वारा कर्म के तहत पंचतत्व और ब्रह्म से जुड़ना. यही है, ब्रह्म के जन्म का हेतु होना. अब चूकि विभिन्न शक्तियाँ स्त्री वाचक हैं,
इसलिए विभिन्न शक्तियों को स्त्रियों से संबोधित किया गया है. जन्म के बाद समय के साथ विद्या के ग्रहण करने से ज्ञान के परिपक्व होने से कोशिकाओं की स्थिरता बढ़ने से कीर्ति यश, श्री-ऐश्वर्य, वाक-वाणी, स्मृति स्मरण शक्ति, मेधा बुद्धि, धृति दृढ़ता, क्षमा धैर्य का क्रमश: आना ब्रह्मरूप है. यही है, विद्या व्यवसाय का आरंभ होना, पढ़ना व पढ़े हुए को स्मरण रखना, स्मरण करते मनन करना, मनन करते गुणन करना, गुणन करते हुए छोटे स्तर मॉडल पर कार्य करना, मॉडल से फील्ड में उतरना, फिल्ड कार्य को आगे बढाते हुए, वातावरणीय संतुलन से शांति ब्रह्मकार्य को करना या होना है.
गंगा कहती है :
शरीर के पंचतत्व में जल की अहं भूमिका का टूटना मृत्यु का कारण है. प्राकृतिक अवस्था से भी मृत्यु जल आधारित रक्त का दूषित ह़ोने का कारण है अत: मैं मृत्यु हूँ. पंच-तत्व को समेटने की क्षमता भी मेरी ही है और मेरा गुण ही जन्म लेने वाले का स्वास्थ्य और संस्कार भी है. अत: मैं जन्म के कारण का कारण ब्रह्म हूँ और जीवन के समस्त पदार्थीय और शक्तिय अन्तः और बाह्य प्रवाहों से मैं जलरूप से संबंधित होते सभी प्राणी के समस्त शक्तियों कीर्ति श्री वाक्, स्मृति, मेधा, धृति तथा क्षमा हूँ.