अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।। अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। गीता : 10.20 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबकी आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
सर्वभूताशयस्थितः अथार्त सब भूतों के हृदय में स्थित, ‘अहमात्मा’, मैं आत्मा हूँ. अतः परब्रह्म कहते हैं कि मैं ही तुम्हारे शरीर का रक्त संचालक, हृदय की धड़कन, साँस भीतर लेने वाला और बाहर फेंकने वाला और मन, बुद्धि व रूप कोशिकाओँ को नियंत्रित करने वाला हूँ और यदि
तुमने यह अवधारणा कर ली की ‘मैं तुम्हारे हृदयस्थल में हूँ’ तो तुम महावीर हनुमान के तेज का, भगवान श्री राम को हृदय में स्थापित करने का, भगवान बनने का कुछ अंश प्राप्त कर काम, क्रोध, लोभ, मद व मोह पर नियंत्रण कर पाते तथा अपने शरीर का E.C G कम करके विभिन्न रोगों से निदान तो पा ही सकते हो यदि यह भी समझ लो कि मेरे आने पर ही तुम आते हो, मेरे रहने पर ही तुम रहते हो और मेरे चले जाने पर तुम चले जाते हो. अतः तुम दृढ़ संकल्पित हो जाओ की ‘मैं’ तुम्हारी आत्मा हूँ. मेरे स्वरूप को हृदय में स्थापित करो. तुम्हारी विभिन्न समस्याओं का निदान स्वतः हो जाएगा.
गंगा कहती है :
मैं पंचतत्व जल, मिट्टी, वायु व स्थैतिक, गतिज, तापीय आदि शक्तियों के आकार- प्रकार के आकाश को धारण करने वाली चहुदिश भ्रमण करते समस्त जीव जगत का निर्लिप्त जलरूप आत्मा हूँ. मैं पंच तत्ववित गंगा के नाम से जाने जानी वाली, परब्रह्म से उत्पन्न होने वाली, उत्तर-भारत में सबसे नीचे स्तर में प्रवाहित होने वाली, समस्त जल स्त्रोतों को जोड़ने वाली, स्वयं सूखने पर सबको सुखाने वाली, सबको समृद्धि प्रदान करने वाली, स्वयं दूषित होने पर सबको दूषित करने वाली, सम्पूर्ण बेसिन वायु मंडलीय वातावरण को नियंत्रित करते हुए सम्पूर्णता से अपने जीव जगत का पालन पोषण करते, मानव को विशेष संस्कार देते हुए उनका उद्धार करने वाली केन्द्रस्थ देवमाता हूँ. अतः मैं तुम्हारे जन्म जीवन मरण तक का मर्यादित साथ निर्वहन करने वाली आत्मरूप तुम्हारी माँ हूँ.