आदित्यानामहं बिष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।। मरीचिर्मरुतास्मि नक्षत्राणामहं शशी ।। गीता : 10.21 ।।
श्लोक का हिंदी अर्थ :
आदित्य के बारह पुत्रों में विष्णु, ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य, उनचास वायु देवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
आदित्य के बारह पुत्रों,
12 ज्योतिर्लिंगों, शक्ति प्रवाहों के तहत निरूपित होने वाले जन्म संचालन पालन आदि से पालन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता का नाम विष्णु है. यह कर्त्तव्य के तहत नाम है. परब्रह्म, यह उस आदमी की तरह हैं जो विभिन्न कार्य करते हुए बेटा, पति, पिता, दादा, नाना, दोस्त, दुश्मन या प्रधानमंत्री आदि होता है. इस पालन कर्ता विष्णु को संचालन के लिये शक्ति चाहिए. इसलिये उन्होंने सूर्य को प्रतिष्ठित किया पर इससे समस्त समस्याओं का निदान इसलिए संभव नहीं था क्योंकि सूर्य से स्थिर शक्ति मिलती है, जबकी निरंतरता से परिवर्तनशील होते शक्ति चक्र की आवश्यकता होती है. इसलिये चन्द्रमा सहित विभिन्न नक्षत्रों और वायु देवताओं से वायुमंडलीय संतुलंता के संरक्षनार्थ अपने को शक्तिहस्थ करना पड़ा. यही है, भगवान श्रीकृष्ण का सूर्यव वायु देवता के तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा का होना.
गंगा कहती है :
‘मैं’ विष्णुप्रिया, जगत के प्रतिपालनार्थ दिन में सूर्य के तेज से उष्मागति की तीक्षणता और रात में रात की और चाँद की शीतोष्ण सुख की मृदुलता के अन्तराल से मैं धराधाम में दृष्यावलौकित प्रवाहित होने वाली गंगा अदृष्यावलौकित होते जल चक्र ‘आकाश गंगा’ का रूप धारण करती हूँ. सूर्य ताप और चाँद की चाँदनी मंडित शीतलता के बदलते अन्तर के तापीय ढ़ाल से विभिन्न तरहों
से दिशाओं, आद्रताओं और दबावों से प्रेरित वायु को मेरी शक्ति का विकेन्द्रिकरण करते हुए विभिन्न जीव के जीवंतता का कारक केवल मेरे अपने बेसिन के लिए ही नही है बल्कि दूर-दूर के बेसीन को भी यह समृद्धि प्रदान करते हैं. यही है मेरी आकाश गंगा. मैं धरती पर सूर्य, चाँद व वायु के रूप में
प्रतिस्थापित हूं.