अनन्तश्चास्मि नागानां बरुणो यादसामहम् ।। पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ।।गीता : 10.29 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मैं नागों में शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
‘शेषनाग’,
लबालब
हलाहल विष से संतृप्त फुफकार से वातावरण को आंदोलित कर देने वाला और निरंतरता से लबलबाते अपने जिह्वा से और फन की दिव्य सुन्दरता से और लम्बाई के लपेटों से, तेजोमय अलंकार दिव्य आभूषण महान शक्ति के प्रतीक का धारक परब्रहम विष्णु, शिव ही हो सकता है. दूसरा तथ्य यह है कि अपने विष की प्रचंड ज्वाला से काँपता जिह्वा को लबलबाता शेषनाग शीतल शांत परब्रह्म से चिपका, अपने आनन्दमय लक्ष्य को प्राप्त कर ब्रह्म हो गया. यही है ब्रह्म का शेषनाग और शेषनाग का ब्रह्म होना. जीव-जगत का खेल ही ब्रहमाण्ड का खेल है. यह खेल जल आधारित है और वरुण जल का मालिक है. अतः ब्रहमाण्ड का खेल, वरुण ब्रह्म का खेल है. यही है, ब्रह्म का वरुण होना, प्रधान मंत्री का, जल संसाधन मंत्री होना. अच्छे कर्म करने वाले जीवात्माओं की आत्माओं, शक्ति केन्द्रों, रानी मधुमक्खियों,अनाज के बीजों के भंडार स्वरूप समयानुसार फल प्रदायक बीजों का बीज कालचक्र का निर्धारित समय ही अर्यमा ब्रह्म है और समस्त जीव में शरीरस्थ कोशिकाओं की निर्धारित अवधि में क्षणमात्र भी टस से मस का नहीं होना ब्रह्म की अटलता का बोधक यमराज का ब्रह्मरूप है.
गंगा कहती है :
‘शेषनाग’, विष और ब्रह्म को एक साथ रखने वाला ब्रह्म रूप है. अत: कठिनाइयों को नजर अंदाज करते ब्रह्म से चिपकने वाला, ब्रह्मत्व के गुणों को रखने वाला, ब्रह्म हो जाता है. मेरा गुण इसी तरह की है. मेरे जल की घटती और अवजल का बढ़ती अनुपात, तीव्र होती विष की मात्रा, गुणोत्तर में बढ़ते कार्बनिक-अकार्बोनिक और जैविक भार को बर्दास्त करते जल गुण को संतुलित कर अपने ब्रह्म शक्ति से करने के कारण ब्रह्माणी हूँ. वातावातावरणीय संतुलन से वर्षा का कारण और वर्षा से अपने आप को संतृप्त कर अपने समस्त जीव-जगत का पालन-पोषण करने वाली वरुण देवता के समान हूँ. आश्विन के कृष्ण पक्ष में और कुम्भ में पितरों के तड़पन द्वारा हमारे माध्यम से संतृप्ति मिलती और समय से अनेक जीव हमसे संरक्षित होते हैं. अतः मैं, अर्पमा पितृ का काम करती हूं. मृत्यु काल में मेरे जल की एक बूँद समस्त बंधनों से मुक्ति देने वाली यमराज नहीं धर्मराज है.