ऊँ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणास्त्रिविधः स्मृतः । ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यग्याश्च विहिताः पुरा ।। गीता : 17.24 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
ऊँ, तत्, सत् -
ऐसे यह तीन प्रकार का
सच्चिदानन्द धन ब्रह्म का नाम कहा है, उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यग्यादि रचे गए.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
‘ऊँ’ का उच्चारण सम्पूर्णता से ऊर्ध्वगामी मोनोंक्रोमैटिक वेव तरंग, अविनाशी शक्ति है. ‘तत् और सत् तरंगें, ऊँ तरंग को वहाँ पहुँचाता जो ब्रह्माण्ड का आनंदानंद-शांतिस्वरूपानंद अपना स्वयं रचनाकार है. यहीं से ब्राह्मण शक्ति को पदार्थ में रूपांतरित करने वाले वैज्ञानिक और उनसे वेद शक्ति को पदार्थ में रूपांतरण करने का समीकरण और यज्ञ समीकरण का प्रैक्टिकल रूप का होना आरंभ हुआ. यही है ब्रह्मांड के रचनात्मक स्तम्भ का मूलाधार. यहीं से आरंभ हुआ ब्रह्मांड का खेल तमाशा.
गंगा कहती है:
ब्रह्मा के कमंडल से, महाविष्णु के चरण कमल से और शिव की जटा से सागर पुत्रों की उद्धार और भारत पुत्रों के चहुंमुखी संस्कार की तेज पुन्ज से ‘शांति-रूपी-शक्ति मुक्ति प्राप्त करना मात्र जीवन उद्देश्य की शिक्षा देने और इसे प्रतिष्ठित करने, ‘ऊँ तत्-सत्’ , ब्रह्माणी-नारायणी हूँ.
गीता (2.67-68) प्रतिष्ठित करती है कि इन्द्रियों से मन जिस इन्द्रिय के साथ रहता है, वह एक ही इन्द्रिय युक्त पुरुष की बुद्धि को भ्रमित कर देती है. अतः जिस पुरुष की इन्द्रियाँ इन्द्रियों के विषय से सब प्रकात निग्रह की हुई है. उसी की बुद्धि स्थिर है. यही स्थिर बुद्धि भारत की सीमा सुरक्षा में चीन जैसे खुंखार देश के दाँत को खट्टा कर देने वाला आणविक हथियार निर्माण और इसके सकुशल परिक्षण में अमेरिका जैसे देश को प्रबलता से टक्कर देने वाला देश में चहुंमुखी गांव-गांव तक पहुंचाने वाले सड़क, बिजली, शौचालय और जन-जन के मन में यह बल उत्पन्न कर देनें वाला ‘भारत संसार के किसी भी देश से किसी मामले में कमजोर नहीं’, यही है प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के स्थित प्रग्य का ‘इन्द्रयाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रग्या प्रतिष्ठिता’, मूलाधार : (10).