यो मामजमनादिं च बेत्ति लोकमहेश्वरम् ।। असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। गीता : 10.3 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जो मुझ को अजन्मा अर्थात वास्तव में जन्म रहित अनादि और लोकों को महान ईश्वर तत्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
अनादिं वजम लोकमहेश्वरम, अजन्मा अनादि लोकों का महान ईश्वर अनन्त समय से आकाश शक्ति को एक साथ मात्र एक अतिविशिष्ट व्यक्ति परब्रह्मरूप, ब्रह्माण्ड स्वरूप अनन्तकाल से अनन्तकाल के लिये सर्वत्रव्याप्त अनन्त शक्ति से हर क्षण बदलते निरंतर करते हुए विभिन्न शक्ति तरंगो से हर पल, हर बिन्दु को संतुलंता से परिवर्तित करते रहते नियमबद्धता को दृढ़ता से निर्वहन करते ब्रहमाण्ड संचालन करने वाले ही परब्रह्म हैं. इस परम सत्य आधारित कोशिका की दृढव्रता से व्यवस्थित शक्ति प्रवाह की निस्तारण पद्धति को प्रतिष्ठा तीक्ष्ण ज्ञान ज्योति की अखंडता परिपूर्णता से अन्तःस्थल में इस सोच से कि पूर्ण शक्ति स्त्रोत परब्रह्म साथ है यह आत्मा को परमात्म शक्ति प्रदान कर देती है. यही है ज्ञान, इस ज्ञान की दृढव्रता से ज्ञानवान समस्त पापों से मुक्त होता है.
गंगा कहती है :
मैं जन्मरहित अनादि और लोकों के महान ईश्वर परब्रह्म से अवतरित ब्रह्माणी साक्षात भगवती पापियों का प्रत्यक्ष एवं परौक्ष रूप से उन्मूलन करने वाली और पुण्यात्माओं की उद्धारिणी हूँ. जीव से जीवोत्पत्ति का सिद्धान्त, साँस लेने और छोड़ने से जीवन की निरंतरता और अविर्लता का सिद्धान्त, नियमित और निर्धारित जीवन-चक्रमन से निरूपित ज्ञानोमय जीवन का सिद्धान्त, वेद पुराण इतिहास आधारित असंख्य जीवंतता के तथ्यों पर आधारित और प्रतिष्ठित मेरी जीवन्ता को सत्यापित करती है. तुम इसे स्वीकार क्यों नहीं करते? यह मौलिक-प्रश्न तुम्हें तीव्रता से झकझोरते हुए पूछता है कि तुम अपने वेद पुराण इतिहास तथा तथ्य आधारित व विभिन्न अवशिष्टों को तथा वैज्ञानिक तथ्यों को स्वीकार नहीं करते हो? और यदि करते हो तो गंगा का न्यूनतम प्रवाह कहाँ, कितना और किस सिद्धान्त से है यह भी परिभाषित कर दो. यही जन्म रहित, अनादि और लोकों के महान ईश्वर से मेरे उद्भव के मौलिक उद्देश्य की पूर्ति कर पायेगा.