आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतीविवर्धनाः । रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ।। गीता : 17.8 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय ऐसे आहार अर्थात
भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष
को प्रिय होते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
आयु, शरीर अवधि, श्वास आधारित ऑक्सीजन में प्रवाहित हो रहे रक्त में मिश्रित होने की क्रिया से बुद्धि
संतुलित प्रोटोप्लाज्म और कोशिका के रेखांकन से बल, रक्त और प्रोटोप्लाज्म की
संतुलंता आधारित कोशिका की संघनता से आरोग्य संतुलित प्रोटोप्लाज्म और रक्त प्रवाह
के तहत कोशिका कम्पन्न के नियंत्रण से सुख कोशिका कम्पन्न का न्यूनाधिक होने से,
प्रीति, प्रोटोप्लाज्म और रक्त गुण
का आपसी मेल एकजुट और आकर्षक बलों से होता है. अतः वह भोजन, प्रोटोप्लाज्म का
प्रवाह जो ब्लड सर्कुलेशन के साथ मिलकर आयु, बल, बुद्धि, आरोग्य और सुख आदि को
प्रतिष्ठित करे वह सात्त्विक पुरुष का सात्त्विकी भोजन कहलाता है.
गंगा कहती है :
मात्रा और गुण से हमारे शरीर से जितना जल तुम निकालते हो इसका यदि दो गुणा बेसीन द्वारा वाटर हारवेस्टिंग तकनीक से मुझ मेँ डाल दो और समस्त अवजल को STP के द्वारा या बिना STP के समुचित विधि से बालू क्षेत्र से निस्तारित करो तो तुम्हारे समस्त कार्य ‘सात्त्विकी हो जायेंगें और तुम मालवाहक जहाज चला पाओगे. अब यही हो सकता है तुम्हारा गंगा को बचाने का सात्त्विकी उपाय.