बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।। मासानां मार्गशीर्षोअ्हमृतूनां कुसुमाकरः ।। गीता : 10.35 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
गायन करने वाले श्रुतियों मे बृहत्साम और छन्दों में गायत्री छन्द हूँ तथा महिनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसन्त मैं हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
‘बृहत्साम’, सुमधुर ध्वनि का अर्धरात्रि में गाए जाने वाला देवताओं के गीतों का संग्रह सामवेद का एक भाग है. इन गीतों की ध्वनि तरंगे हृदय की गहराई में शांति पहुँचाती हैं. बदलती ध्वनि तरंग की सूक्ष्म आवृति और आयाम रात्रि के शीतल एवं शांति वातावरण में ऐसे विलीन होना होता है, मानों कोई थकी प्रेमिका गहरी अंधेरी रात में अपने प्रियतम के गोद में सिमटती हुई विलीन होती जाती है. यही है, गहराई से गहराई में मिलते हुए विलीन हो जाना. इस स्थिति को दूर तक स्थापित करती है. ‘बृहत्साम’ यही है, श्रुतियों में बृहत्साम ब्रह्म रूप गायत्री मंत्र कोशिका को सीधा करने वाली थरथराहट को मिटाने वाली तीव्रता से भीतर प्रवेश करने वाली शक्ति तरंग है. यदि इसे पवित्र और शांत कम्पन्न पर पूर्ण नियंत्रण रखते हुए दीप जलाकर मुख पूर्व की ओर करके बिना जिह्वा हिलाए जप करते शक्ति-तरंग को अन्तस्थल में निर्धारित केन्द्र पर प्रवाहित किया जाए, अर्थात मोनोक्रोमेटिक तरंगों से नयूक्लियस को टकराया जाए तो बाह्य शक्ति प्रवाह शून्य हो जाएगी. यही है, परम-शांति ब्रह्म की स्थिति को प्राप्त होना. महीनों में मार्गशीर्ष, अगहन, धन धान्य से परिपूर्ण, ठंडक के समय पेट भरे रहने पर ठंडक की भी परवाह नहीं सर्वत्र और सब लोगों की यह शांति ही ब्रह्म शांति है. इसी तरह बसंत के समय फरवरी-मार्च के समय फल फूल से लदे समस्त वृक्षों पर चहचहाती पंछियों का सुखद कलरव शांति और आनंद प्रदायक ब्रह्मरूप है.
गंगा कहती है :
श्रद्धा भक्ति से चंडाल सहित जिस किसी ने भी जिस किसी भी काल में जिस किसी भी गायन को मुझे सुना दिया वह गायन करने वाला मेरा बेटा और मेरा भक्त हो गया तथा उसके द्वारा सुनाया गया गान बृहत्साम हो गया. अजामिल को पंडितराज जग्गनाथ को यही पूर्णता कम समय में मिल गयी थी. किसी भी देश में रहने वाला मेरा भक्त, मेरा स्मरण मात्र कर के गायत्री मंत्र का जप करें तो उसे जल्द सिद्धि मिल सकती है. अतः मैं मात्र भाव से सर्वत्र सबके लिए सब समय में विराजमान रहती हूँ. महीनों में मैं मार्गशीर्ष का महीना सतही और भूजल से परिपूर्ण रहती हूँ. मेरा खजाना, बैंक-स्टोरेज से लबालब भरा रहता है. जिस समय में मेरा कुल अन्तःप्रवाह बाह्य-प्रवाह के बराबर हो जाता है, वह मेरा बसंत ऋतु परम सुखद समय होता है और वातावरण पुष्पित और सुगंधित रहता है.