भारत की प्राचीनतम एवं अत्यंत पूजनीय नदियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गंगा नदी है, जिसे सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक एवं आर्थिक संसाधन के रूप में अग्रणी माना गया है एवं इसी कारण गंगा नदी को भारत की राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया जा चुका है. भगवान शंकर की जटाओं से मुक्त होकर पृथ्वी पर अवतरित हुई गंगा का वर्णन शिव पुराण, श्रीमद भागवत गीता एवं प्राचीन मान्य ग्रन्थों में भी साक्षात् दिखाई देता है. लगभग 10 लाख किमी के विशाल भू- भाग को सींचकर यह पावन सरिता गंगा- ब्रहमपुत्र बेसिन के मैदानों की जनसंख्या का पोषण करती है. भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा माँ 2525 किमी की यात्रा करते हुए उत्तराखंड के पथरीले मार्गों से प्रवाहित होते हुए उत्तरी भारत के मैदानों को सींच कर सुंदरवन के उपजाऊ डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में सम्मिलित हो जाती है.
पवित्र गंगा का उद्गम -
कुमायूँ में हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से उद्गमित होकर 3140 मीटर की ऊँचाई से प्रवाहित होती है. गंगोत्री हिमनद का वास्तविक जल स्रोत 5000 मीटर ऊँचाई पर स्थित एक घाटी से है. इस घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की श्रृंखलाओं में है. गौमुख के मार्ग में 3600 मीटर ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गौमुख हिमनद के दर्शन होते हैं. इस हिमनाद में नन्दा देवी, कामत पर्वत और त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है, इस प्रकार गंगा के स्वरुप लेने में बहुत सी छोटी एवं बड़ी धाराओं का योगदान सर्वाधिक है.
अलकनन्दा की सहायक नदी मुख्य रूप से धौली, विष्णु गंगा और मन्दाकिनी है. विष्णु प्रयाग में धौली गंगा एवं अलकनंदा का संगम होता है. इसके उपरांत नन्द प्रयाग में अलकनन्दा का नंदाकिनी नदी से संगम होता है. तत्पश्चात कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा, कर्ण गंगा से जल प्राप्त करती है, फिर ऋषिकेश से 139 किमी की दूरी पर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनन्दा मन्दाकिनी से मिलती है. इसके बाद भागीदारथी और अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं. यहां से यह सब नदिकाएं सम्मिलित रूप से गंगा नदी के रूप में प्रवाहित होकर आगे बढती है. इस प्रकार गंगा नदी मैदानी इलाकों में प्रवेश से पहले बहुत ही दुर्लभ एवं संकरा मार्ग तय करती है.
गंगा नदी : सांस्कृतिक महत्त्व -
कृषि, उद्योगों, धार्मिक पर्वों एवं पर्यटन के विकास में गंगा नदी का महत्त्व बहुत अधिक है. गंगा तटों पर स्थापित अनगिनत धार्मिक स्थल एवं तीर्थ स्थान जैसे ; ऋषिकेश, हरिद्वार, वाराणसी आदि भारत की सांस्कृतिक परम्परा को केवल देश ही नहीं विदेशों में भी बनाए हुए है. दुर्लभ जलीय जीवन, वनस्पतियों व खनिजों से भरपूर गंगा नदी में एक विशेष प्रकार का विषाणु बैक्टेरियोफेज पाया जाता है, जो जल में जन्य विषैलें सूक्ष्मजीवों को समाप्त करने में सहायक सिद्ध होता है. गंगा घाटी में अद्भुत सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ है, जहां वैदिक ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व वैभवशाली सभ्यता-संस्कृति की छवि का अवलोकन होता है. पशन संस्कृति के अवशेष भी गंगा घाटी में प्रस्फुटित हुए हैं साथ ही रामायण एवं महाभारत के पवित्र श्लोकों को माँ गंगा ने अपने तटों पर उच्चारित होते भी सुना है.इसके उपजाऊ मैदानों ने मगध एवं मौर्य शासन जैसे अनगिनत कालखंडों को अपने किनारों पर पोषित होते हुए देखा है.
गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियां यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियां चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं. यमुना गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है, जो हिमालय की बन्दरपूंछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है.
बंगाल की खाड़ी में संगम से पहले विश्व के सबसे बड़े एवं उपजाऊ सुंदरवन डेल्टा का निर्माण करती है, यह डेल्टा गंगा एवम् उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी नवीन जलोढ़ से हजार वर्षों में निर्मित समतल तथा निम्न मैदान है. सागर की ओर निरंतर विस्तृत डेल्टा प्रगतिशील डेल्टा के नाम से जाना जाता है. सुन्दरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लायी गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है, जिससे डेल्टा का आकार सतत बढ़ता चला जाता है और नदी की कई धाराएँ तथा उपधाराएँ में विभाजित होकर इच्छामती नदी, विद्याधरी नदी, कालिंदी नदी आदि के रूप में प्रवाहित होती है. इस प्रकार गंगा अपनी अद्भुत यात्रा से ना केवल एक बड़ी जनसंख्या अपितु जलीय जीवन को भी पोषण देते हुए भारत, बांग्लादेश व नेपाल की जीवन रेखा के रूप में जानी जाती है.
गंगा नदी की अविरलता एवं संरक्षण हेतु निरंतर प्रयासरत कार्यकर्त्ता
नदी एवं पर्यावरण सम्बन्धी विषयों और भारत पर उनके प्रभाव पर जारी रिसर्च का हिस्सा.
वी. के. जोशी जी देश के प्रमुख पर्यावरणविद एवं नदी संरक्षक हैं, उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नदियों के नवनिर्माण के लिए समर्पित किया है.
डॉ. अमिता सिन्हा भारतीय संस्कृति के अंतर्गत नदी विरासत पर सराहनीय शोध कार्य कर चुकी है, जिसमें उन्होंने गंगा, यमुना, गोमती आदि नदियों की ऐतिहासिकता एवं धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी ...
मुकेश जी विशेष तौर पर “गंगा जैव विविधता संरक्षण” के मुद्दे पर अनवरत कार्य करते हुए आम जन के मध्य हमारी युगों पुरानी नद्य संस्कृति की अलख जगा रहे हैं.