देश में नदियों में बढ़ते प्रदूषण का कारण अब फैक्ट्रियों, उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि नदियों में अवैध रूप से काटे गए पशुओं का खून और शव के टुकड़े भी तैरते हुए दिखाई देने लगे हैं. जिससे नदियों के जल के रंग के साथ ही जल की गणवत्ता का स्तर बुरी तरह से प्रवाहित हो रहा है. वहीं पूजनीय मानी जाने वाली नदियों में मृत जानवरों के अंश मिलने से आम लोग भी हैरान हैं.
हाल ही में वाराणसी से इस प्रकार की घटनाएं सामने आयीं, जिनमें जिले की नदियों में पशुशव पाए गए. कुछ दिन पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के एक पैनल ने भी यह जानकारी दी कि उत्तर- प्रदेश में वरूणा नदी के पानी में मृत पशुओं के खून के अंश पाए गए हैं, जिसकी वजह से कई जगहों पर नदी का पानी लाल रंग का दिखाई पड़ रहा है. जिसके चलते नदी का जल व्यापक स्तर पर दूषित हो चुका है. वहीं वरूणा नदी वाराणसी में गंगा नदी में मिल जाती है, जिससे इसके साथ बह रहे पशु शव व अन्य अपशिष्ट भी गंगा नदी में मिल रहे हैं, इससे गंगा नदी की स्थिति और अधिक भयावह हो रही है.
एनजीटी ने ऐसी घटनाओं के लिए प्रदेश सरकार, उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) व वीएमसी (वाराणसी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) के लापरवाह रवैये को जिम्मेदार ठहराया है. साथ ही वाराणसी प्रशासन और वीएमसी को निर्देश जारी करते हुए यह सुनिश्चित करने का कहा है कि दो माह के अंदर वरूणा और अस्सी नदियों में अवैध नालों से गिरने वाले पशु शव, खून व मांस के टुकड़ों आदि पर रोक लगायी जाए. इसके अलावा संबधित संस्थाओं द्वारा स्थानीय लोगों को नदियों में प्रदूषण की जानकारी देते हुए उनमें स्नान न करने का निर्देश दिया जाए.
इससे पहले भी इस वर्ष की शुरूआत में एनजीटी द्वारा गठित Eastern UP Rivers and Water Reservoirs Monitoring Committee (EUP-RWRMC) को शोध के दौरान नदी में लाल रंग का पानी मिला था. सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति डी.पी. सिंह की अध्यक्षता वाली EUP-RWRMC ने एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट में बताया कि, वाराणसी में वरूणा और अस्सी नदी में प्रदूषण का प्रमुख कारण घरेलू अपशिष्ट व पशु शव और खून हैं, जिसका प्रमुख कारण अर्दली बाजार में अवैध रूप से संचालित स्लाटर हाउसेज़ से अनुपचारित पशु अपशिष्ट का नदी में गिरना है.
एनजीटी की समिति के अलावा कई वैज्ञानिकों ने भी वरूणा नदी का पानी बुरी तरह दूषित होने का दावा किया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, वरूणा के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है, साथ ही नदी में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर अनुमेय सीमा (डिटेक्टेवल लिमिट) से नीचे है.
इस पर एनजीटी पैनल के सचिव ने भी बताया कि शास्त्री घाट तक वरूणा नदी में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर 2.5 mg/L पाया गया, किन्तु अर्दली बाजार से निकलने के बाद नदी की स्थिति यह होती है, कि उसमें घुलनशील ऑक्सीजन के स्तर को मापा भी नहीं जा सकता. घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर डिटेक्टेवल लिमिट से नीचे पहुंचने से यह स्पष्ट से कि स्लाटर हाउस से नदी में गिरने वाला अनुपचारित अपशिष्ट पानी के लिए कितना अधिक हानिकारक है. वरूणा में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया है कि नदी का पानी पीने और नहाने के साथ ही जलीय जीव- जन्तुओं के रहने योग्य भी नहीं रह गया है.
एनजीटी ने वाराणसी प्रशासन को मामले को गंभीरता से लेने और कड़ी कार्रवाई करने का आदेश जरूर दिया है, लेकिन प्रदेश सरकार को भी इस मुददे पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है. अपने कार्यकाल की शुरूआत में ही अवैध स्लाटर हाउसेज़ पर चाबुक चलाने वाली योगी सरकार के राज में ऐसी घटनाएं सरकार की साख पर सवाल खड़ा कर रही हैं.