नदी में जगह-जगह पर डैम और बैराज से जल-स्तर का ज्यादा अन्तर किया जाना होता है. यह मानव-शरीर में कलेजे के धड़कन को तेज करने जैसा होता है. यदि यह अन्तर डैम से डैम के बीच की दूरी, कम-कम दूरी पर हो तो यह नदी की धड़कन को बढ़ाना है. यही है, पहाड़ के टूटने-धसने की आवृति का तीव्र होना. यह नदी का हार्ट एटैक है, इससे मिट्टी धसती है, लैंड-स्लाइड्स ज्यादा होता है तथा नदी में मृदा-भार ज्यादा होते हैं. यही है बढ़ते बड़े बाँधों की संख्या से गंगा में समस्यायों का बढ़ना. अत: बदलाव के ढ़ाल की बढ़ती बारंबारता से उत्पन्न समस्याओं को निरंतरता से नजरअंदाज करना गंगा की भयावह समस्या है.
डैम बैराज से ऊपर, अप-स्ट्रीम में और इसके नीचे डाउन स्ट्रीम में जल स्तर का अन्तर बड़े डैम में सैकड़ों मी. का होता हैं. यह जमीन के भीतर जल सतह के ढ़ाल को तीव्र करता है. यदि चट्टान सेडीमेन्ट्री/ मेटामॉरफिक रॉक हो, जिसमें सीपेज-रेट, जल प्रवाह क्षमता तीव्र हो तो ये उँचे और उँचे-ढाल के हों तो धसन ज्यादा होती है. इस तरह यदि बड़े-बाँधों की श्रृंखला हो तो जमीन के भीतर लम्बाई की दिशा में जल सतह तरंग के रूप में चलेगी. यह नदी में मृदाभार बढ़ाता जायेगा, यही समस्या गंगा की है. यही कारण है कि विश्व में गंगा का मृदाभार लगभग सबसे ज्यादा है, जो गंगा के पेट का तीव्रता से बढ़ते जाने का कारण है और जगह-जगह पर बाढ़ का आना और कटाव, मियैन्ड्रींग के बढ़ते रहने की समस्या का कारण है. यही है बड़े बाँधों की संख्या में निरंतर होती वृद्धि से गंगा की समस्या का बढ़ते रहना.