अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् ।। परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ।। गीता : 9.11 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मेरे परम भाव को न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ सम्पूर्ण भूतों के महान ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपनी योगमाया से संसार के उद्धार के लिये मनुष्य रूप विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
परं भावमजानन्तो अथार्त परमभाव को नहीं जानने वाले, मौलिक-चरित्र को नहीं समझने वाले होते हैं. भौतिकीय स्वरूप से अन्तःस्थल की भावनाओं को परिलक्षित कर लेना ये कुछ लोग ही कर पाते हैं, पर भीतरी तीक्ष्ण शक्ति के प्रकाश की किरणें बाहर होने वाले कार्यों की विलक्षणताओं से परिलक्षित होती रहती है. भगवान श्रीकृष्ण ने मानव के शरीर को धारण तो जरूर किया था लेकिन नाग पर नाचना, कंस को मारना, गोवर्धन- पर्वत को ऊँगली पर उठाना आदि अनेकों कार्यों के करने के उपरांत भी गंगा-पुत्र भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य आदि जैसे महान ज्ञानी लोग भगवान श्री कृष्ण का महत्त्व को भगवान जैसा उल्लेख नहीं किया गया था. यही है परब्रह्म की योगमाया, श्रीकृष्ण को भगवान रूप में नहीं पहचान पाना. यदि यह होता तो युद्ध क्यों होता? जो श्री कृष्ण कहते उसे ही सारे लोग मानते.
गंगा कहती है :
मैं कठोर तपस्वी राजा भागीरथ की अटल-साधना से सागर पुत्रों का उद्धार करके भगवान शिव की जटा में रमण करती हुई गिरिराज हिमालय पर अवतरित हुई हूँ. क्या इसमें तुम्हें विश्वास नहीं है? राजा शान्तनु से मेरी शादी और भीष्म पितामह मेरे सुपुत्र क्या इसमें तुम्हें विश्वास नही? महान शिव भक्त मैथिल कवि विद्यापति के मृत्यु सजा तक आने वाली पंडितराज जगन्नाथ की प्रार्थना से द्रवित होने वाली क्या इन पर तुम्हें विश्वास नही? उपरोक्त पर तुम्हें विश्वास हो या न हो पर तुम्हें इन पर विश्वास करना ही होगा कि (1)मैं विश्व की अधिकतम स्थैतिक-ऊर्जा, सबसे ऊँचे स्थान से प्रहवान हूँ (2)मैं अपने जल में 12-14 पी.पी.एम तक ऑक्सीजन रखने वाली तथा औषधि-गुणों से पूर्ण रहने वाली विश्व में अकेली हूँ (3)विश्व का सबसे बड़ा समतल महान उपजाऊ बेसिन रखने वाली मैं अकेली हूँ. गंगा की महानतम शक्तियों को संसार का कोई व्यक्ति नकार नहीं सकता है. ऐसी स्थिति परिस्थिति में तुम मुझे साधारण नदी क्यों समझ रहे हो?
क्या संसार के किसी भी नदी के जल का दोहन लगातार भीमगोरा और नरौरा जैसे बैरेजों से लगभग पूरा का पूरा हो रहा है? अतः तुम साधारण नदी जैसा व्यवहार भी हमारे साथ नहीं कर रहे हो. मैं मानती हूँ कि अंग्रेजों ने दुष्टभाव से बैरेजों का निर्माण करवाया पर अब देश स्वतंत्र हो गया है तो मैं क्यों परतंत्र रह गयी हूँ? इन में सुधार की महान आवश्यकता है. यही है, जिस तरह भगवान श्री कृष्ण को लोग भगवान नहीं स्वीकार करते तो मुझे देवी-भगवती-गंगा
को कौन समझे. तुम मुझे साधारण नदी भी नहीं समझते सूखती जा रही नदी में मालवाहक जहाज किस तकनीक से चलाने जा रहे हो यह समझ से परे की बात है. यदि यह करना ही है तो पहले बेसिन को व्यवस्थित कर जल संग्रहण करो और आउट-फ्लो का प्रबंधन करो. यही तुम्हारी जय-जयकार होने की दीर्घकालीन तकनीक है.
सुन्दर सन्देश. धर्म क्षेत्र और कर्म क्षेत्र जागे; मां गंगा की आज़ादी सुनिश्चित करने के काम में नेतृत्व करें.