महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।। भजन्त्यनन्यमनसो ग्यात्वा भूतादिमव्ययम् ।। गीता : 9.13 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे कुन्तीपुत्र ! देवी प्रकृति के आश्रित महात्माजन मुझको स्वभूतों का सनातन कारण और नाश रहित अक्षर स्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
प्रकृति आश्रित महात्मा
केन्द्रस्थ रहते समय से बदलते शक्ति तरंगों से निरूपित और रेखांकित पथ का अनुसरण करने वाला शान्तिपथ गामी, शक्तिक्षय नियंत्रित रखकर चलते रहने वाले होते हैं. इसका अर्थ है कि उनकी टाँगें केन्द्र से बंधीं रहती है. न्यूक्लियस की दिशा में निर्देशित हर कदम पर अभिनय करने
वाली आकर्षक ताकत हमेशा विद्यमान होती है. यही होता है,
सब
भूतों के सनातन कारणों को उस को जानने का अर्थ. परम-शांति स्थल न्यूकलियस को चिन्हित कर उसे दृढ़ता से पकड़े रहना, यही है अनन्य-भाव, प्रधानमंत्री को सब कारकों के कारक के पाँव को कठोरता से तब तक छाने रखना जब तक समस्याओं के कष्टों का निवारण न हो जाए. यही है अनन्य भाव को निरंतरता से समस्त शक्ति-तरंगों का केन्द्र में निरंतर समाहित होते रहना.
गंगा कहती है :
देवी प्रकृति के महात्माजन और साक्षात भगवान “राम-कृष्ण-शिव” का विवाह और अनेकानेक क्रीड़ास्थली. एक से एक महान साधकों विद्वानों विज्ञान के अथाह सागर वेद-पुराणों के रचनाकारों की महापुण्य स्थली विश्व में मात्र ज्ञानोम्य महापुण्य भूमि भारत ही है. इस भूमि के समस्त आदि भौतिक दैविक एवं अन्य विलक्षणतायों के समस्त आधारों का आधार सनातन कारण मैं ही हूँ. मेरी इस अनन्त शक्ति स्त्रोत की विल्क्षणतायों का प्रत्यक्ष दर्शन मेरे ग्रेट प्लेन के न्यूनतम तारंगिक चरित्र , तरंग ऊंचाइयों का
न्यूनतम आयाम, अधिकतम आवृत्ति, ऊर्जा को दर्शाता है
और उसे परिभाषित करता है. अत: तुम्हारे उपरोक्त समस्त भौतिक-आध्यात्मिक-लौकिक और पारिलौकिक शक्तियों का आधारभूत स्त्रोत मैं हूँ. यदि तुम ने मेरे इस सनातन-शक्ति की रक्षा नहीं की तो धनवान भले हो जाओ परन्तु तुम हमेशा अशांति सागर में डुबे रहोगे और विश्वगुरू को कभी नहीं हो पाओगे. अतः भारत के “विश्वव्यापी शांति मंत्र” का आधार मात्र मैं हूँ, इसको हृदयस्थ करो.