मया ततमिदं सर्वं जगदब्यक्तमूर्तिना ।। मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः ।। गीता : 9.4 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
यह सम्पूर्ण जगत मेरे अव्यक्त रूप द्वारा व्याप्त है. समस्त जीव मुझमें समाहित है, किन्तु मैं उनमें नहीं हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
“मेरे द्वारा समस्त जगत व्याप्त है,” यह उद्घोष सत्यापित करता है कि उनकी शक्तिप्रवाह से ही सम्पूर्ण ब्रहमांड आक्षादित और परिपूर्ण है. भगवान श्रीकृष्ण का निरंतरता से घूमता हुआ सुदर्शन-चक्र यही है. यह उसी तरह है, जैसे सूर्य कहीं और सूर्य की शक्ति किरणों से जगत सम्पूर्ण प्रकाशित होता है. यह शक्ति-प्रवाह सत्यापित करता कि दृष्यावलौकित ब्रहमांड की जितनी भी चीजें जैसे ग्रह, नक्षत्र व तारे आदि हैं, उन सभी परब्रह्म शक्ति से निर्मित शक्ति का पदार्थीय रूपांतरण उसी तरह का है जैसे समुद्र जल में बर्फ के तैरते अनंत छोटे-बड़े टुकड़ो का होता है. अतः समस्त ब्रह्माण्ड परब्रह्म के अव्यक्त शक्ति द्वारा व्याप्त है और समस्त जीव इसी शक्ति से संचालित और नियंत्रित हैं पर परब्रह्म जीव शरीर के भीतर नहीं है. यह उसी तरह है जैसे सूर्य शक्ति तुम्हारे समस्त कार्यों के कारणों के रहते हुए भी तुम्हारे भीतर नहीं है. यही है वृहत से सूक्ष्म की व्यवस्था.
गंगा कहती है :
तुम जो मेरी छोटी धारा को देखते हो, यह मेरे व्यक्त-शक्ति का बोध कराता है. मेरी अव्यक्त शक्ति पूरे बेसिन को अदृश्यावलौकित भूजल संचालन पद्धतियों से आवेषित करती है तथा अनन्त जीवों को पालन-पोषण निरंतरता से करती रहती है. मुझसे जितनी भी नदियाँ संगम करती है उनके समस्त बेसिन का भूजलस्तर मुझसे परिभाषित, संरक्षित तथा व्यवस्थित होता है. अतः समस्त प्राणियों का मैं प्राण हूँ, वे मुझ पर आधारित हैं तथा मैं उन पर आधारित नहीं हूँ अत: हमारी व्यवस्था ही, समस्त भाग का प्रबंधन
है. वर्तमान सिंचाई व्यवस्था वृहत से सूक्ष्म का अत्यधिक रूपांतरण, सूक्ष्म से वृहत में ऊपजाऊ भूमि को ऊसर भूमि में बदलना तथा नीचे के विशाल बेसिन भाग की ऊर्वरकता को घटाना, भूजल प्रदूषक को बढ़ाना आदि को सम्बोधित करता है. अतः हमारी अव्यक्त शक्ति ही व्यक्त जीव-जगत का मूल कारण है तथा इसे संरक्षित करना ही नदी संरक्षण तथा संतुलन व्यवस्था है.