ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहमृतस्याव्ययस्य च। शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ।। गीता : 14.27 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
क्योंकि उस अविनाशी परब्रह्म का, अमृत का, नित्यधर्म का और अखण्ड एकरस आनंद का आश्रय मैं हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
अखण्ड, एकरस, आनंदमय, ध्यानमग्न होकर सम्पूर्ण शक्ति को एकाग्र करना ही “मैं एक बिन्दु हूँ” की अवधारणा है. यह तब तक संभव नहीं होता जब तक “सर्वशक्तिवान ब्रह्म मेरे साथ है” का दृढ़ विश्वास नहीं होता. इसके नहीं होने का अर्थ निकलता है कि कोई और विशिष्ट शक्ति है, जो बाहर है. इस स्थिति में ध्यान में पूर्ण एकाग्रता नहीं हो पाती. अतः सब कुछ भीतर ही हैं, यही है ब्रह्माण्ड को ब्रह्म का शरीर होना. हर एक एटम में सर्वशक्तिमान न्यूट्रोन का स्थापित होना. यही एकाग्रता, शक्तितरंगों को रेखांकित होने को परिभाषित करता है. यही है नित्यधर्म का पालन करना, इस स्थिति में अनादिकाल तक बने रह सकना ही है अविनाशी परब्रह्म का आश्रय प्राप्त करना. यही है गणेश जी के द्वारा माता-पिता स्वरूप शिवलिंग को कसकर पकड़ना और प्रथम पूज्य-देव बनना. यही है बुद्धिवानों को न्यूकलियस स्तर पर कार्य करना. जड़ के स्तर पर किसी समस्या का निदान करना.
गंगा कहती है :
अखंडता से, प्रकृतस्थ -स्थिरावस्था की समृद्ध अतुलनीय शक्तियाँ, गंगा बेसिन की प्रचुरता से निहित सम्पदा है. इसका तकनीकी उपयोग धन, विवेक, ज्ञान और शांतिरूप सम्पदा की प्रदायिनी है. इस सम्पदा को सम्पूर्णता से समझते हुए इसका तकनीकी संवर्धन देश का पहला प्रोजेक्ट होना चाहिए. इसके लिए गंगा का सीमांकन, फ्लडप्लेन के स्वरूप को परिभाषित करना, इसकी जोनिंग करना, विभिन्न आवश्यक क्रॉस सेक्शन पर इसमें होने वाले न्यूनतम-प्रवाह को परिभाषित करना, अधिकतम जल को कहाँ से कैसे निस्तारित करना आदि पर निर्भर करता है. यही है न्यूकलियस की व्यवस्था करना, यही है देश की केन्द्रस्थ शक्ति को पहचानना और इसकी संतुलित व्यवस्था करना. यही है गंगा का अखण्ड एकरस आनंद प्राप्त करना.