नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति । गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोअधिगच्छति ।। गीता 14.19 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्त्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्द धनस्वरूप मुझ परमेश्वर को तत्त्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
द्रष्टा आत्मा है तथा तीनों कर्ता, बुद्धि , मन और इन्द्रियाँ हैं. तीनों कर्ताओं के तहत शरीर का काँपना लगातार जारी रहता है एवम् तीनों में कार्य के फल से कम, उससे ज्यादा और सबसे ज्यादा क्रमशः लगाव रहता है. अतः बुद्धि द्वारा हुए कार्यों से कंपन्न न्यून, मन के द्वारा उससे ज्यादा आवृत्ति, आयाम और समय से तथा इन्द्रियों के द्वारा उससे भी ज्यादा कठोर और नहीं मिटने वाला कम्पन्न होता है. यही है, तीनों का फलदायिनी होना और शरीर की कम्पन्नावस्था निरंतरता से बढ़ते-बदलते जाना और एक जन्म से दूसरे जन्म और दूसरे से तीसरे, इस तरह अनंन्त काल तक जीवन चक्र धोखाधडी के कार्य से चलता रहता है. इसलिये कार्य किया और इसे वहीं तत्काल मिटा दिया, यही है, ब्रह्म को आत्मा के साथ विराजमान परमात्मा को तथा न्यूट्रॉन को पकड़ना. यही है , सब कुछ तुम्हारा, तब, झूठ के तहत इसको क्यों ढोना? यही है उसको आत्मस्त करना और उससे वार्तालाप करना और उससे कहना , कृपा कर ठगों मत, यही है उस ब्रह्म को कसकर पकड़ना, उसे टस से मस नहीं होने देना और अपने आप को किसी कर्म-बंधन से, फल की इच्छा से नहीं बन्धने देना.
गंगा कहती है...
बड़े बड़े बाँध का निर्माण यथा, टिहरी, 260.5 मी. डिजाइन हाईड्रो-पावर, 1500 मेगावाट, वास्तविक 700 मेगावाट ; चीन का TGP 150 मी. , हाइड्रोपावर , 18,000 मेगावाट क्यों? कभी सोचा है, इसका जबाब-देह कौन है? अतः तुम मात्र हमको पहचानो. Micro-Dam-System से तुम, 18,000-20,000 मेगावाट तक बिना गंगा-जल को प्रदूषित किये स्थाई रूप से जल- विद्युत पैदा कर सकते हो? तुम्हारा सिचाई-प्रबंधन आमूल-रूप से व्यवस्थित करनें की आवश्यकता है, परंतु तुम यह क्यों नहीं कर रहे हो? कितनी नदियाँ मर चुकी हैं, कितनी नाला बन गयी, काशी का अस्सी-नाला क्या है? 10 दिन का कार्य, क्यों नहीं हो रहा है? अतः ये सारे-कार्य इसलिये नहीं होते क्योंकि समस्त राज-नेता और प्रशासक अपने को नदी विशेषज्ञ समझते हैं. यही है गंगा के और समस्त नदियों के दयनीय-दशा का कारण, यही है ब्रह्माणी गंगा को नहीं पहचानना.