मां च योअव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते। स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ।।गीता : 14.26 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग के द्वारा मुझको निरंतर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भली भाँति लाँघकर सच्चिदानंदन ब्रह्म को प्राप्त होने के योग्य बन जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
अव्यभिचारी भक्ति योग बिना कुछ सोचे-समझे, बिना किसी नियम का पालन किये, सब कुछ, नियम भी और अनियम भी तुम्हीं हो. यह प्रचंड स्वभाव का भक्ति-भाव अत्यन्त दुर्लभ है. कालीदास, इसी स्तर के भक्त थे. इस प्रचंड हृदयस्थल की तरंगायित शक्ति-तरंगों में मन-इन्द्रियां निष्क्रिय हो जाती हैं और समस्त कोशिकाएं इष्ट-देव के स्वरूप को ग्रहण कर लेती है. बस कोशिका रेखांकित हो गयी. वर्षों की सिद्धि क्षण में मिल गयी, जो शरीर विद्युत् का कुचालक था, वह सुचालक बन गया. अतः जब किसी कर्म का फल अपने हाथ में नहीं और अगले क्षण, क्या होने जा रहा है, यह भी मालूम नहीं, तब तो नाम मात्र का मिनिस्टर और आई.ए.एस अधिकारी, इनके अतिरिक्त कब क्या दुर्घटना घटेगी या क्या बीमारी होगी, यह सब भी नहीं मालूम. तब सब शक्ति व्यर्थ, सब कुछ उसके हाथ में है और वह सबको ठग रहा है. यही अवधारणा अव्यभिचारी भक्त के हृदयस्थ हो जाती है. वह संसार को कष्टमय, छल से भरा पूरा, असत्य समझने लगता है और ब्रह्म को “ठग”. इसी “ठग” को पकड़ने के फेर में वह लगा रहता है .
गंगा कहती है :
सूख चुकी गंगा में भी मालवाहक जहाज चलाने का तुम्हारा “ड्रीम प्रोजेक्ट”, एक प्रकार से अव्यभिचारी- कर्मयोग है, हो सकता है , मालवाहक के साथ-साथ परिस्थितियों के तहत् तुम समतल गंगा बेसिन में मेड़बंदी आरंभ कर दो. जलाशयों, जंगलों आदि को समग्र स्थानों पर व्यवस्थित करवाओ. अतः अव्यभिचारी कर्मयोग, भक्ति-योग हो जाए और तुमसे गंगा-बेसिन व्यवस्थित हो जाए.
आज का मंथन :
भीमगौड़ा-नरौरा बैराज से 95-100% जल-दोहन किस तकनीक पर आधारित है?