यत्तु कामेप्सुना कर्म
साहंकारेण वा पुनः । क्रियते बहुलासं तद्राजसमुदाहृतम ।। गीता : 18.24 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
परन्तु जो कर्म बहुत
परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता
है, वह कर्म राजस कहा गया है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
अहंकार युक्त पुरुष,
अपने को अपने से शक्ति विसर्जित करने वाला होता
है. इस कारण किसी कार्य के लिए वह अपनी शक्ति की आवश्यक निर्धारित आयाम को कार्य सिद्धि
के लिए नहीं लगा सकता. उसका अहंभाव उसके शक्ति प्रवाह का क्षय कारक होता. यही है अपनी शक्ति का
भक्षण स्वयं करते हुए राजसी कार्य करना.
(33) भारत के
स्थित-प्रग्य प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आत्म-शक्ति-से समाविष्ट हुए महान
कर्मयोगी हैं ?
गीता (2.38-40) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं सुख-दुःख,
जय-पराजय, लाभ हानि को समान समझ कर्मबंधन को नष्ट करो. इस कर्म योग के
आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा सा भी साधन
जन्म मृत्यु रूप महान भय से रक्षा कर देता है. कवि इस ज्ञान शक्ति से पूर्णता से समाविष्टित
है, तभी तो वह कहता है कि पक्षियों के घोसले
बिखर जाते हैं वैसे ही यहाँ तो सभी बिखरा पड़ा है. जो भूमि कल तक तपोभूमि बनी हुई
थी, सैकड़ों हृदय एक होकर साधन करते थे, कैसे पवित्र वातावरण का निर्माण हुआ था. आज
मानों सब कुछ बह गया ऐसा लगता है. माँ ! मेरे पास ऐसा पात्र होता तो मैं अंजली
भर-भर कर इस आनंद को एकत्र कर लेता उसे सँभाल लेता ! कैसी मस्ती थी यहाँ. खैर,
जीवन महत्व का यह भी एक भाग है कभी उत्कृष्ट
आनंद तो कभी अति विषाद. शायद व्यक्तित्व की यह तितर-बितर अवस्था ही नवसृजन का आधार
तो नहीं है ? ऐसा कैसे मान सकते हैं ?
शायद अंतर मन का संघर्ष ही जीवन की दिशा
निर्धारित करने वाला समयवल होता है और समयवल की यह नीव ही इमारत की ऊँचाई को
टिकाएगी ( पुस्तक-साक्षीभाव ,
पृष्ठ-71 ) । यही हैं कर्तव्य कर्म करने वाले योद्धा भारत के
महान-प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के 10-12-1986 के मनोभाव ‘कर्म-योग’ की भावना.
गंगा कहती है :
अहंकार युक्त पुरुष मेरा घमंडी बेटा हुआ. यदि वह छोटा है तो उदंड है और बड़ा है तो मोचंड
है. छोटे से बड़े तक वह मेरे सूखे स्तन को तिरता व दोहन
करता है. वह यह समझने का प्रयास ही नहीं करता कि स्तन को दूध देने की सीमा होती और
वह खानपान पर निर्भर करता है. यह खानपान तुम नदारथ रखे हुए हो. लगभग 10 लाख वर्ग कि.मीं का मेरा विश्व का सबसे समतल दोरस
मिट्टी का महान उपजाऊ बेसिन से संसार में लगभग सबसे ज्यादा मृदा का हर वर्ष बहाव होना
कितना दुखदायी होते अविवेकपूर्ण है. अतः तुम विवेकवान पुत्र नहीं होकर बिलकुल
स्वार्थी हो यही केवल और केवल दोहन का कार्य और मुझे तुमसे इसके बदले कुछ भी नहीं तुम्हारा
मेरे प्रति राजसी कार्य है.
मनुष्य स्वार्थवश नदियों
का दोहन कर रहा है.
human are exploiting the rivers selfishly.